आर्थिक आपातकाल लागू करने का विकल्प

अब कोरोना वायरस महामारी की चुनौतियों से कारगर तरीके से निपटने के लिए आर्थिक आपातकाल लगाने की आवाज उठ रही है। क्या वैश्विक महामारी से निपटने के लिए आर्थिक आपातकाल ही एक उपाय है? आर्थिक आपातकाल लगाने के पक्ष में 21 दिन के लॉकडाउन और इससे उत्पन्न गंभीर आर्थिक संकट का हवाला दिया जा रहा है। देश में लागू लॉकडाउन के दौरान वित्तीय गतिविधियां लगभग ठहर गयी हैं। महानगरों से श्रमिकों का पलायन हो रहा है, जिसे नियंत्रित करना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। केन्द्र और राज्य सरकारें युद्धस्तर पर काम कर रही हैं। सरकार ने नागिरकों से घरों के भीतर ही रहने का अनुरोध किया है और इस पर सख्ती से अमल के लिए उसने जहां कई तरह की पाबंदियां लगायी हैं, वहीं जनता में भरोसा पैदा करने के लिए उसने अनेक राहतों की भी घोषणा की है। देश में अगर आर्थिक आपातकाल लागू होता है तो स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब संविधान के अनुच्छेद 360 का इस्तेमाल करके ऐसा निर्णय किया जायेगा। इससे पहले, देश में 25 जून, 1975 को आंतरिक गड़बड़ी की आशंका में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू किया गया था। हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि देश में आर्थिक आपातकाल लगाने की नौबत आयेगी, लेकिन स्थिति से निपटने के लिए अनुच्छेद 360 के इस्तेमाल के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका ने चौकन्ना कर दिया है। इस स्थिति में केन्द्र सरकार को बहुत ज्यादा अधिकार मिल जायेंगे और वह देश को आर्थिक संकट से उबारने के नाम पर संसद की मंजूरी के बगैर ही आर्थिक मामलों से संबंधित तमाम निर्णय ले सकेगी। दलील है कि कोरोना वायरस की महामारी से बचाव के लिए देश में लॉकडाउन करने के निर्णय पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 या फिर आपदा प्रबंधन कानून, 2005 के सहारे निपटना काफी मुश्किल है। इस महामारी से निपटने के लिए केन्द्र, राज्य सरकारों, स्थानीय प्रशासन और जनता को मिलकर काम करना होगा। इसके लिए जरूरी है कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से निर्देश देने की प्रक्रिया अपनाने की बजाय एक समेकित कमान को इसकी बागडोर सौंपी जाये ताकि इस महामारी पर नियंत्रण के लिए बेहतर तरीके से कार्रवाई की जा सके । संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत आर्थिक आपातकाल लागू करने के लिए यह याचिका सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टेमेटिक चेंज नामक संगठन ने दायर की है। आपातकाल लाग करने, चाहे आंतरिक गड़बड़ी की वजह से हो या फिर आर्थिक संकट की वजह से, का विचार दिमाग में आते ही 45 साल पुरानी यादें, यातनाएं और मौलिक अधिकारों के हनन की घटनाओं से बदन में सिहरन दौड़ने लगती है। याचिका दायर करने वाले संगठन का दावा है कि लॉकडाउन की वजह से वित्तीय गतिविधियां ठहर गयी हैं। अत- संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत देश में आर्थिक आपात स्थिति लागू करना समय की आवश्यकता है। याचिका में दलील दी गयी है, 'ऐसा करना सिर्फ कोरोना वायरस को हराने के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी जरूरी हैइस लॉकडाउन की वजह से इस समय आवागमन की आजादी के अधिकार से संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त अधिकारों के साथ ही लगभग सारे मौलिक अधिकार इस समय निलंबित हैं।' हमारे देश के संविधान में तीन तरह के आपातकाल की परिकल्पना की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत अगर राष्ट्रपति इस तथ्य से संतुष्ट होते हैं कि युद्ध, आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की वजह से भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो संपूर्ण देश या उसके किसी हिस्से पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर सकते हैं। आपातकाल में सरकार के पास असीमित अधिकार होते हैं और अनुच्छेद 19 में प्रदत्त मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं जबकि अनुच्छेद 20 और 21 में प्रदत्त अधिकार यथावत बने रहते हैं। इसी अनुच्छेद 352 के अंतर्गत 25 जून, 1975 से करीब 18 महीने के लिए समूचे देश ने आंतिरक गड़बड़ी के नाम पर पहली और संभवतआखिरी बार आपातकाल का अनुभव किया। देश में जब 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद चुनाव हुए और जनता पार्टी सत्ता में आयी तो उसने संविधान में संशोधन करके ऐसा प्रावधान कर दिया, जिसकी वजह से किसी भी राजनेता के लिए आपातकाल लागू करके तानाशाही का रास्ता अपनाना आसान नहीं होगा। इसी तरह, संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने पर वहां आपातस्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने का प्रावधान । संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत देश में आर्थिक आपातकाल लागू किया जा सकता है। ऐसा उन्हीं परिस्थितियों किया जा सकता है जब राष्ट्रपति को लगे कि देश या इसके किसी राज्य में आर्थिक संकट बना हुआ है और इसकी वजह से भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है तो वह आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि देश और देशवासी संयम के साथ एकजुट होकर इस महामारी के संकट पर विजय पाने कामयाब होंगे और देश में आर्थिक आपातकाल लगाने की नौबत नहीं आयेगी।