अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने दुनिया के मंदीकाल में प्रवेश होने की बात स्वीकार की है। जाहिर-सी बात है कि कोरोना वायरस से छिन्न-भिन्न अर्थतंत्र में ऐसी आशंकाएं पहले से ही विद्यमान थीं। भारत में तीन सप्ताह के लॉकडाउन के बाद ऐसे ही कयास लगाये जा रहे थे। निसंदेह भारत की अर्थव्यवस्था में पहले से ही मंदी के प्रभाव देखे जा रहे थे जो सरकार व केंद्रीय बैंक के मौद्रिक उपायों के बावजूद आशा अनुकूल परिणाम नहीं दे पाये। हालांकि, जब तक कोरोना वायरस का घातक प्रभाव समाप्त नहीं हो जाता है तब तक आर्थिकी की सही तस्वीर उभर नहीं पाएगी। देखना होगा कि इसका प्रभाव देश-विदेश में कितना होने वाला है। जिस तरह देश-विदेश की आर्थिक गतिविधियां थमी हुई हैं और एक अघोषित संचारबंदी जारी है, उसका प्रभाव अर्थतंत्र पर पड़ना स्वाभाविक था। लेकिन इसके अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन तब तक ठीक-ठीक नहीं किया जा सकता है जब तक हम इस वायरस संक्रमण को पूरी तरह खत्म नहीं कर पायें। यूं तो हम पिछले एक वर्ष से धीमी विकास दर से जूझ रहे थे मगर वायरस संक्रमण ने आर्थिकी की राह में गहरी खाइयां खड़ी कर दी हैं। वैश्विक यात्रा प्रतिबंधों व आपूर्ति श्रृंखला टूटने से आर्थिकी की रफ्तार पर अंकुश लगा है। होटल, पर्यटन समेत समस्त आर्थिक परिदृश्य थमा हुआ नजर आ रहा है। जाहिर तौर पर रोजगार के अवसरों का संकुचन होगा। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने तरलता संकट को दूर करने के प्रयास हालिया घोषित मौद्रिक नीति के जरिये किये हैं, जिसको दुनिया में सकारात्मक प्रतिसाद भी मिला है। इन विषम परिस्थितियों में ये मौद्रिक उपाय कितने कारगर होते हैं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। कोरोना संकट से उपजे हालात ने हमें यह सबक तो दिया ही है कि स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने की जरूरत है। इसके लिए बजट बढ़ाने की जरूरत है ताकि भविष्य में हम ऐसी चुनौतियों का मुकाबला अर्थव्यवस्था को धीमा किये बिना कर सकें। विश्वास किया जाना चाहिए कि देश इस अवसाद काल से जल्दी उभरेगा। निसंदेह हमारे सामने 2008-09 की मंदी के सबक हैं। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को गति देते समय ध्यान देना होगा कि यह घटनाक्रम वैश्विक स्तर पर है। हम इस मश्किल स्थिति को अपने लिये अवसर में बदल सकते हैं। आयात की निर्भरता खत्म करके इन उत्पादों को देश में तैयार करके आर्थिकी को स्वावलंबी बना सकते हैं। भारत दुनिया का सबसे अधिक युवाओं का देश है। श्रम शक्ति की प्रचुरता का यदि सही ढंग से नियोजन हो सके तो देश की आर्थिकी को गति मिल सकती है। सरकार ऐसे उद्योगों को सब्सिडी देकर प्रोत्साहन दे सकती है। इससे जहां आयात कम होगा, वहीं देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश पिछले चार दशकों की उच्चतम बेरोजगारी दर से जूझ रहा है। कृषि में बड़ी आबादी की निर्भरता को देखते हुए जरूरी है कि इसे लाभप्रद व्यवसाय में बदला जाये। नई तकनीक व नए फसल चक्र से खेती के जरिये हम खेती को लाभप्रद बनाकर शहरों की तरफ बढ़ने वाले पलायन को भी रोक सकते हैं। यदि नये परिदृश्य में रोजगारपरक आर्थिकी को प्रोत्साहन दिया जाता है तो रोजगार के अवसर सृजित होने से लोगों की क्रय शक्ति भी बढ़ेगी। इससे कालांतर में अर्थव्यवस्था को मंदी के दुश्चक्र से निकालने में कामयाबी मिल सकती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विज तथा अन्य साख निर्धारण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था फिच सोल्यूशंस ने 2020-21 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर में कटौती की है। फिच ने यह अनुमानित दर 4.6 बतायी है। एजेंसी ने कोरोना महामारी के चलते खपत में कमी और निवेश कमजोर पड़ने को इसकी वजह बताया है। वहीं मूडीज इन्वेस्टर्स कैलेंडर वर्ष 2020 के लिये जीडीपी की वृद्धि दर पिछले तीन दशक में सबसे कम आंकी है। भारत को इसे चेतावनी मानते हुए अर्थव्यवस्था को आसन्न संकट से उबारने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे।
कोरोना ग्रसित आर्थिकी